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तलाश-गए कहाँ घनश्याम?

तलाश- गए कहाँ घनश्याम?
शिथिल देह बोझिल सी आँखें,
अपलक शून्य निहार रहीं हैं।
कहाँ गए घनश्याम हमारे?
लेकर नाम पुकार रहीं हैं।।

सतत नेत्र से बहते आँसू,
बहके-बहके पथ कदम चले।
जिन वृक्षों से थी फल-आशा,
कभी नहीं फल उनपे निकले।
नहीं आ सकीं नावें अब तक,
जो सरिता उस पार रहीं हैं।।
     कहाँ गए घनश्याम हमारे?
      लेकर नाम पुकार रहीं हैं।।

बिना किए बरसात गगन से,
आकर बादल सब  चले गए।
फूटा  घड़ा  भाग्य  का  ऐसा,
सब दिखें बिखरते स्वप्न नए।
नहीं  देखतीं  आँखें  मुड़कर,
जो अब तक दो-चार रहीं हैं।।
       कहाँ गए घनश्याम हमारे?
       लेकर नाम पुकार रहीं हैं।।

ऋतुएँ आकर चली गईं सब,
बिना दिए कुछ राहत तन को।
कभी - कभी  भव - झंझावातें,
करती रहतीं आहत मन को।
पतझर-पतझर दिखें चतुर्दिक,
सम्यक जहाँ बहार रहीं हैं।।
       कहाँ गए घनश्याम हमारे?
        लेकर नाम पुकार रहीं हैं।।

जीवन का यह चक्र निराला,
सुख-दुख दोनों सँग पलते हैं।
आशा  संग  निराशा  भी  है,
दीपक भी बुझते - जलते हैं।
यौवन को तो ढलना ही है,
ये  बातें  स्वीकार  रहीं  हैं।।
       कहाँ गए घनश्याम हमारे?
        लेकर नाम पुकार रहीं हैं।।
                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                        9919446372

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5 Comments

Sushi saxena

13-Sep-2023 03:28 PM

V nice

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सुन्दर सृजन और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Abhinav ji

13-Sep-2023 12:38 AM

Very nice

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